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।। ॐ श्री गुरुवे नमः ।। 
।। ॐ श्री गणेशाय नमः ।।

श्री शारदा चालीसा

शारद नगरी मैहर वासा ।

तीन लोक महुँ करहि प्रकाशा ।।

शारद सत् ना जानहि कोई ।

प्रम भगति जप-तप नहीं होई ।।

शारद मध्यप्रदेश महुँ राखा ।

देविप्रसाद निज अनुभव भाखा ।।

शारद महिमा कोई नहिं जाना ।

नेति नेति कह वेद बखाना ।।

शारद नाम सुखद सुखराशी ।

ब्रह्मा विष्णु भजहिं कैलाशी ।।

शारद के गुण गावहिं देवा ।

ऋषि मुनि नित पावहिं सेवा ।।

शारद सुमिरन हनुमत कीन्हा ।

मनचाहा आयुष वर लीन्हा ।।

शारद नाम जपहुँ दिनराता ।

निर्मल बुद्धि होई मन गाता ।।

शारद वाहन हंस विराजी ।

नाद ब्रह्म वीणा स्वर साजी ।।

शारद प्रेम विनय मन राखी ।

मातु रखहिंजसपलकहिं आँखी ।।

शारद नाम रसहिं मन पागे ।

सप्तचक्र कुण्डलिनी जागे ।।

शारद सबद जानि ओंकारा ।

ब्रह्मरूप अवचिल अविकारा ।।

शारद चरण भजहिं मन देहा ।

मातु बसहिं ताके उर गेहा ।।

शारद जाप विवेकहिं जागा ।

जो न भजहिं नर जानि अभागा ।।

शारद शक्ति सबहि जग वासा ।

सुमिरन से नर पाई न त्रासा ।।

शारद ज्योति प्रकाशहि लोका ।

नाम लेत भव होहि न शोका ।।

शारद दिव्य ज्ञान की दाता ।

श्रद्धा सुमन भक्त जब लाता ।।

शारद भक्ति मुक्ति की दाता ।

जो नर भजन करहिं दिन राता ।।

शारद चरण कमल अविनाशी ।

नाम प्रभाव छूटि यम फाँसी ।।

शारद माता गंग समाना ।

जो नर नित्य करहिं स्नाना ।।

शारद नाम जहाजहिं रूपा ।

पार होहिं भवसागर कूपा ।।

शारद कलयुग में वरदायी ।

आल्हावीर अमरता पाई ।।

शारद मातु बुद्धि की देवी । 

जो नर होय देह मन सेवी ।। 

शारद देवी दुर्गा काली । 

दरश देहु जय मैहर वाली ।। 

शारद सुमिरहु मनसा वाचा । 

मातु करहि मन बुद्धि साचा ।। 

सारद सरिस न कोउ जग माँहीं । 

दरश-परश सब पातक जाँही ।। 

शारद मातु अविद्या नाशा । 

ध्यान करहिं तम होहि विनाशा ।। 

शारद नाम जपहुँ संसारा ।

नाम लेत भव उतरहिं पारा ।।

शारद दुर्गविनाशिनी माता ।

तुम ही लक्ष्मी सब सुख दाता ।।

शारद मातु पिता तुम मोरे ।

सदा रहे मन चरणन तोरे ।।

शारद चित चंचल मन मोरा ।

देवि आसरा केवल तोरा ।।

शारद नाम सुअंजन नैना ।

होहिं प्रकाश जाहीं दुख रैना ।। 

शारद विनय न जावहिं खाली । 

तू ही दुर्गा खप्परवाली ।।

शारद पूजा सरल सुबोधा ।

लोभ मोह मद जावहिं क्रोधा ।।

शारद मातु विनय सुन मोरी । 

प्रेम चरण में लागई डोरी ।। 

शारद चालीसा जो गावे ।

लौकिक लोक सम्पदा पावै ।।

शारद मातु अमंगल हरणा ।

बार-बार वन्दऊँ मैं चरणा ।।

शारद कोर कृपा की कीजै ।

चरण शरण आपन मोहि दीजै ।।

शारद चरण धूलि नित पाउँ ।

कोटि जनम चालीसा गाऊँ ।।

शारद देवि प्रसादी पावा ।

मातृ कृपा चालीसा गावा ।।

।। दोहा ।।

शारद देविप्रसाद की, पूरण कर दो चाह ।
दर्शन अपना दीजिए, चलहुँ सत्य की राह ।।

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